संत रविदास जयंती में उमड़ा जनसैलाब , दलितों के साथ सवर्णो ने किया सहभोज

 


भदोही : 13वीं सदी में काशी के एक दलित परिवार में जन्मे संत शिरोमणि रविदास यानी रेदास जी का जयंती माह  सामाजिक जातियों पर प्रहार और गुण-ज्ञान को सम्मान देने का माहौल दे दिया है, जिसका उपयोग विभिन्न राजनीतिक पार्टिया  और सामाजिक संगठन अपने-अपने हित में करते देखे जा रहे हैं गत दिनों ही भदोही जनपद के दरुनहा   गांव में विश्व हिंदू महासंघ द्वारा एक बड़ा आयोजन हुआ महासंघ के प्रदेश मंत्री एवं दरुनहा में ही जन्मे पूर्व मंत्री एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय बाबू वंश नारायण सिंह के वंशज उपेंद्र सिंह द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष एवं प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष  भिखारी लाल प्रजापति  सहित कई हिंदूवादी संगठन और राजनीतिक दल के शीर्ष लोगों ने शिरकत किया, कार्यक्रम की बड़ी खासियत हजारों की तादाद में जुटी भीड़ रही जिसमें ब्राह्मण क्षत्रियों के अलावा पिछड़े और दलित वर्गों के लोग शामिल रहे, कार्यक्रम में मौजूद करीब 1000 गरीबों को आयोजन उपेंद्र सिंह के तरफ से कंबल दिया गया, कार्यक्रम का समापन सहभोज के साथ हुआ,  जिसमें हर जाति वर्ग के लोगों ने एक दूसरे के साथ घुल मिलकर भोजन किया, कार्यक्रम में जिलाधिकारी विशाल सिंह सहित पुलिस अधिकारियों ने भी शिरकत की, सभी ने संत शिरोमणि रविदास के सामाजिक एकता वाले मंत्र को आत्मसात करने एवं सामाजिक विभेद की बुराइयों को दूर करने का आवाहन किया, भदोही जनपद में संत शिरोमणि रविदास जी के निमित्त यह बड़ा और ऐतिहासिक आयोजन रहा जिसकी सराहना महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष श्री प्रजापति ने भी किया , श्री प्रजापति ने दावा किया की पुरे प्रदेश भदोही का यह आयोजन ऐतिहासिक रहा , जिसका श्रेय  उपेंद्र सिंह को जाता है ,  दलित बाहुल्य भीड़  के बीच शाहिद झूरी सिंह के प्रपुत्र रामेश्वर सिंह और मोड़ निवासी इंजीनियर शिव शंकर सिंह आदि सैकड़ों  गणमान्य द्वारा एक साथ सहभोज करना अंचल  में समाज को बड़ा संदेश दिया, संचालन करता अपना दल यश के जिला अध्यक्ष हरिलाल पाल की भूमिका लोगों को लंबे समय तक बांधे रखने में सफल मानी गई, 



                                                     इस आयोजन से परे जो बातें उभर कर आई वे समाज के उन जिम्मेदार लोगों और राजनीतिक नुमाइंद्रों की स्वार्थी मनसा को नंगा करने वाली रही जो अब तक संत शिरोमणि रविदास के विषय में भ्रामक बातें फैलाकर समाज में कटता फैलाने का ही कार्य अधिक करते रहे हैं, चर्चा के दौरान कई दलित बुजुर्गों ने यह स्वीकारा कि उन्हें यह पहली बार पता चला कि अब तक जिन जाति विशेष के लोगों पर वे भेदभाव का आरोप लगाते रहे वास्तव में इस जाति वर्ग के लोगों ने ही रविदास को संत शिरोमणि रविदास जी बनने के मुकाम तक पहुंचाया, अब आप भी जाने की वे तथ्य क्या है जिन्हें अब तक विशेष महत्व नहीं दिया गया, इसका खुलासा विश्व हिंदू महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष भिखारी लाल प्रजापति ने अपने उद्बोधन में दिया, श्री प्रजापति संत शिरोमणि के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए बताया कि संत रविदास का जन्म ही चमत्कारिक था जो इस बात का प्रमाण है कि रविदास परम आत्मा थी, दुनिया में उन्हें उपेक्षित वर्गों को सम्मान दिलाने एवं उस दौरान जारी जातीय विद्वेष को समाप्त करने के उद्देश्य से आना पड़ा था, बताया कि रविदास के जन्म के बाद जब पास पड़ोस  उसके लोग जारी सामाजिक परंपरा के अनुसार उनके पिता के घर पहुंचे तो उसमें एक अंधा भी था किवदांती है कि पड़ोसियों के बीच जैसे ही शिशु  लाया गया उस दौरान अंधे की दृष्टि भी उधर घूम गई जिधर शिशु था, यह काम चमत्कार नहीं था कि शिष्य के तरफ दृष्ट घूमते ही अंधे की आंखें चमकने लगी और उसमें रोशनी आ गई, बालक रविदास की शिक्षा उनके ब्राम्हण  गुरु शारदानंद के यहां हुई, विख्यात वैष्णव संत रामानंद ने उन्हें दीक्षा दी और उन्हीं से प्राप्त गुरु मंत्र का मनन और भजन उन्हें रेदास से संत रविदास बना दिया, उनके जीवन से संबंधित कीवदंतियों पर गौर करें तो रविदास के शिक्षक गुरु शारदानंद ब्राह्मण थे, जो उस दौरान कट्टर वीडियो की अपेक्षा और तिरस्कार सहकर भी रविदास को पढ़ाया, उन्हें गुरु ज्ञान अथवा दीक्षा देने वाले संत रामानंद भी वैष्णव ब्राह्मण थे,  



                                        बताते हैं कि रविदास के शिष्यों में सर्वाधिक संख्या क्षत्रियों की थी उनके समकालीन राजवंशी राणा परिवार की राजपूतानी भक्त मीराबाई खुद रविदास को अपना गुरु बनाया था, रविदास के अनुयायियों में सर्वाधिक वैश्य समुदाय से थे, ऐसे में जहां ब्राह्मण उन्हें शिक्षा दिया हो, वैष्णव संत उन्हें गुरु दीक्षा दिया हो, क्षत्रिय वंशी उनके शिष्य रहे हो और पिछड़े एवं वैश्य समुदाय उनका अनुयायी रहा हो, तब यह कैसे कहा जा सकता है कि भारतीय समाज दलित वर्ग में जन्मे संतो के सम्मान के प्रति उपेक्षा की है, जबकि इसी भेद को बढ़ावा दे- देकर वर्तमान राजनीतिक दल सामाजिक दूरियां बढ़ाने में लगे हैं, इसके लिए समाज कम राजनीति के स्वार्थी गण अधिक जिम्मेदार हैं, भदोही के दरुनहा  में हुआ संत शिरोमणि रविदास जयंती समारोह उक्त तत्वों को समाज के सामने लाकर यह संदेश तो दिया ही है कि व्यक्ति जाति के कारण पूज्य अथवा अपेक्षित नहीं होता बल्कि अपने कर्म और ज्ञान से समाज में अपना स्थान बनता हैI

(लक्ष्मी शंकर पांडेय)